जिला प्रशासन और भू-माफियाओं के अनोखे गठबंधन ने सरकार व न्यायपालिका को किया शर्मसार

राजस्व न्यायलय दादरी मे, बेबुनियाद मामलों की भरमार?
डा0वी0के0सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार)
गौतमबुद्ध नगर। तत्कालीन उपजिलाधिकारी, उपजिलाधिकारी (न्यायिक) एवं न्यायलय तहसीलदार अब न्याय के मंदिर नहीं रहे बल्कि, इन न्यायालयों की कार्यशैली मे माफिया प्रेम की झलक सुस्पष्ट नजर आती है
सच कहूं तो, इन्हे न्यायालय कहने से बेहतर होगा कि, दादरी के राजस्व न्यायालयों को इंसाफ की दुकान और, न्याय सिंघासन पर आसीन अधिकारियों एसडीएम, तहसीलदार, नायब तहसीलदार आदि अधिकारियों को न्याय की दुकानों का मालिक कहना न्याय के लिये तहसील परिसर के चक्कर लगाते पीड़ितों को अपनी सुविधा से क्लाइंट्स, ग्राहक या कस्टमर कहना ही न्यायोचित होगा, तथा राजस्व कर्मचारियों लेखपालगणों एवं राजस्व निरीक्षकों को इन दुकानों को शोभायमान करने हेतु, ग्राहक लाने वाले एजेंट कह सकते हैँ.
विश्वस्त सूत्रों एवं एकत्रित अभिलेखीय साक्ष्यों से ज्ञात है कि, विगत कुछ वर्षों से दादरी परिसर मे नियुक्त / प्रतिनियुक्ति उपजिलाधिकारियों का माफियाओ के प्रति प्रेम, इच्छीत वरदान देने वाली कामधेनु के समान रहा है, सूत्रों से ज्ञात हुआ कि, राजस्व निरीक्षकों, तहसीलदारों एवं उपजिलाधिकारी द्वारा एकत्रित अनैतिक कमाई मे उत्तर प्रदेश के राजस्व मंत्री से लेकर भाजपा शासित सरकार के मंत्रियों तक हिस्सा पहुँचता है, कदाचित यही कारण है कि, इन अधिकारियों के भ्र्ष्टाचार के साक्ष्य होने के बावजूद इन भृष्ट अधिकारियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही क्यों नहीं होती है?
बहराल, उत्तर प्रदेश मे, प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ प्रदेश के बड़े बड़े कुख्यात माफियाओं जैसे विकास दुबे, अतीक अहमद, मुख़्तार अंसारी एवं दुजाना गैंग के सरगनाओ को ठोक रही हो किन्तु दूसरी तरफ गौतमबुद्ध नगर जिला प्रशासन मे संवैधानिक पदों पर आसीन तत्कालीन उपजिलाधिकारी आदि इन्ही हिस्ट्रीशीटर्स / गँगेस्टर्स के चरणों की धुल मस्तक पर लगाकर अपने दिन की शुरुआत करते हैँ.
समाज व सरकार मे मौजूद विद्वानों के संज्ञान मे लाना है कि, शासनादेश 2015 के अनुसार, यदि कोई वाद / विवाद यदि किसी सक्षम न्यायालय मे विचाराधीन हो तो, उसमे प्रशासनिक हस्ताक्षेप नहीं किया जा सकता है, किन्तु दादरी तहसीलदार मे यह एक आम बात है, यहाँ उपजिलाधिकारी भू माफियाओं के चरणों की धूल मस्तक पर, जेब माल भरने के लिए कुछ भी कर सकते हैँ.
इतना ही नहीं, यदि कोई वाद जिसका निस्तारण एक बार किसी न्यायालय हो चूका हो तो, उसी वाद की पुनरावृति उसी न्यायालय मे, उन्हीं पक्षकारों के बीच *जो कि, सीपसी 1908 की धारा 11 नियम 7 से बाधित है, नहीं चलाया जा सकता है किन्तु, यहाँ न्यायालय नियम कानून से नहीं बल्कि, न्याय खरीदने वाले ग्राहक की औकात के हिसाब से चलते हैँ.
इतना ही नहीं दादरी तहसील मे नियुक्त / प्रतिनियुक्ति तत्कालीन उपजिलाधिकारी व राजस्व निरीक्षक भू माफियाओं से मिलकर निजी संपत्तियों पर कब्ज़ा करवाने का कारोबार करते हैँ, निश्चय ही सरकार से ज्यादा माफिया सरकारी कर्मचारियों का ख्याल रखते होंगें.
बहराल सच क्या है, समाचार के साथ संलग्न अभिलेखिय साक्ष्य व प्रशासन द्वारा कब्ज़ा करवाने का वीडियो देखे, और स्वयं तय करें, क्या सही है? और क्या गलत?